अभी विश्वभर का ध्यान अमेरिका फेड पर लगा हुआ है कि कोरोना काल के बाद पहली दफा ये ब्याज दर को कम करने वाला है। इसी वजह से विश्वभर के बाजारों में बहुत ऊंच-नीच दिखाई दे रही है। घरेलू बाजार में भी रेट कट की आशा में इक्विटी मार्केट बेंचमार्क इंडेक्स BSE सेंसेक्स और निफ्टी 50 रिकॉर्ड ऊंचा जा रहा है। वैसे ये कमी कितनी रहेगी इसका भी खुलासा जल्दी ही हो जायेगा।
इस समय पर रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया की चर्चा करे तो अमेरिकी फेड के निर्णय के बाद इसमें होने वाली कमी पर अनुमान लग रहे है। वैसी सार्वजनिक क्षेत्र में भारत के सर्वाधिक अग्रणी बैंक स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) के चेयरमैन सीएस शेट्टी मानते है कि फूड इंफ्लेक्शन पर अनिश्चितता के कारण पॉलिसी रेट में कमी आने संभावना नहीं नजर आ रही है।
2022 से रेपो रेट की दर स्थिर
रिजर्व बैंक की तरफ से 8 मौकों पर रेपो रेट में परिवर्तन नहीं हुए है। इससे पूर्व में अंतिम मौके पर यह साल 2023 की फरवरी काम में बढ़ने के बाद 6.5% पर की गई थी। इससे पहले कोरोना काल के समय पर 27 मार्च 2020 को इसको 5.15% से कम करके 4.40% और इसके बाद 22 मई 2020 को 4% कर दिया था।
फिर 8 जून 2022 को यह 5.40%, 30 सितंबर 2022 को 5.90% और 7 दिसंबर 2022 को 6.25%, 8 फरवरी 2023 को 6.50% की गई। तब से ये स्थित बनी हुई है वैसे बाजार को कमी का इंतजार जरूर है।
इन देशों के सेंट्रल बैंक ने बेंचमार्क रेट में कमी की
इस समय पर विश्वभर में ब्याज दरों की कमी का इंतजार जारी है। अमेरिकी फेड की घोषणा की उल्टी गिनती की शुरुआत हो चुकी है। और बचे हुए सेंट्रल बैंको की बात करें तो यूके, यूरोजोन, कनाडा, मेक्सिको, स्विजरलैंड और स्वीडन आदि में कटौतियां की जा चुकी है।
अक्टूबर में RBI गवर्नर की मीटिंग
अब अगले माह यानी अक्टूबर के 7 से 9 तारीख में रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया के गवर्नर शक्तिकांत दास की अध्यक्षता के अंतर्गत मौद्रिक नीति समिति (MPC) की मीटिंग होने वाली है। इसके बाद ब्याज दरों पर किसी ऐलान की संभावना है। विशेषज्ञों की राय में मौद्रिक नीति समिति में रिजर्व बैंक रेपो में कुछ कमी कर सकता है। लोग भी अधिक धन को बचाकर इसको बाजार में निवेश कर सकेंगे। इसके बाद बाजार में फंड आ जाने से भारत की इकोनॉमी में बेहतरी भी होगी।
भविष्य में काफी चुनौतिया है
फेड रिजर्व की तरफ से ब्याज दरों में कमी के बाद भविष्य में थोड़े वक्त तक ब्याज दरों में कमी की इशारा मिलता है। इस तरह से RBI के ऊपर भी प्रेशर है कि वो भी ब्याज दरों मतलब रेपो रेट में कमी करे। इस तरह से RBI के गवर्नर शक्तिकांत दास के समक्ष काफी चुनौतियां आ चुकी है।